पहले तो ये बिंदिया घूँघट से उन्हें झाँका करती थी ,
ये चूड़िया कलाइयो में इतराया करती थी ,
मेरी माग में सिन्दुर्री सूरज बिखर के चमकता था ,
काजल मग्न थे पीया के दरस में ,
श्रृंगार से दर्पण की आँख मिचोली थी ,
जब मैं हर शाम मिला करती थी उनसे ,
अब वो बात नहीं हैं ,
नाही मिलन की बेला हैं वो रात नहीं हैं , रात ,
ये रात नहीं बस सियाह अँधेरा हैं ,
टूटा सा हिस्सा , कुछ उनका हैं कुछ मेरा हैं ,
अब मेरे कंगन तडपते हैं उनकी एक मुलाकात के लिए ,
विरह की अग्नि में तडपती हैं पायल हर रात के लिए ,
जलकर बुझते हैं, बुझके फिर सुलग उठते यादो के अंगारे,
ये जग झूठा हैं बस तुम ही सच हो मेरे प्राण प्यारे,
सारे जगत से मैंने मुह मोड़ लिया ,
मेरी ये पलकें क्या झूकी,
काजल ने आँखों का साथ छोड़ दिया ,
वह भी क्या बेला थी यह भी क्या बेला हैं
धड़कन की कम्पन अब भी हैं पर “ह्रदय “ अकेला हैं !
वह संग भी हैं पर पास नहीं ,
खुशिया तो हैं पर ख़ुशी का तनिक भी एहसास नहीं ,
ना जाने कब वो दिन आएगा जब “नाथ” मेरे आयेंगे
और पहली “रैना “ होगी “ जब हम जगे रह जायेंगे
फिर से चुनरी लहराएगी , चूडिया इतरायेगी , अंगूठी शर्माएगी,
सारी रात रहूंगी उनकी बाहों में जाने वो “रैना “ कब आएगी
.........................................................................अर्चना
शर्मा